डॉ आकांक्षा चौधरी, राँची
डॉ आकांक्षा चौधरी का जन्म मिथिला की पावन भूमि में हुआ और कर्मभूमि झारखंड की राजधानी रांची बन गया। माता हिंदी की शिक्षिका और पिता बैंक में प्रबंधक। घर में अनुशासन और शिक्षा के माहौल के बीच जीव विज्ञान (संत जेवियर कॉलेज रांची झारखंड) और दंत चिकित्सा (दरभंगा बिहार) दोनों विषयों में स्नातक किया। मसूढों और ओरल इंप्लान्टोलाजी में स्नातकोत्तर (मुलाना हरियाणा) किया। ज्ञानार्जन की प्रक्रिया यहां नहीं रुकी बल्कि क्लिनिकल कास्मेटोलाजी में पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा भी किया। कुछ समय के लिए अवध डेन्टल कालेज में व्याख्याता के तौर पर भी जुड़ीं। दस सालों से रांची में निजी चिकित्सालय में अपनी सेवाएं दे रहीं हैं। पांच साल के बेटे और एक साल की बेटी की मां की भूमिका भी निभा रही हैं।चिकित्सा के क्षेत्र के अलावा साहित्य, नृत्य और पेंटिंग में भी रुचि है। साहित्योदय परिवार में कार्यकारिणी सदस्य के रूप में अपनी सेवाएं दे रही हैं।
1 काले काले बदरा-
गरजे यूँ कजरा;
प्रिय की प्रिया का
मन भरमा।।
बैठी थी यौवना
घूंघट काढ़े;
निकली है चपलाएं-
बरखा आए!
अलमस्त घटा-
देखे खगा;
प्यासी है कृष्णा
तेरी गोपियां!
फिर घिर आए बदरा
प्रिय की प्रिया का
मन भरमा।।
नाचे मयूरा-
हंसों का जोड़ा;
गूंजे पपीहे
तेरी बोलियां!
फिर घिर आए बदरा
प्रिय की प्रिया का
मन भरमा।।
2
नदी के किनारे-
अकेली सोचती;
पूछ बैठी-
अंतर्मन से।
कौन हो??
मौन में गूंजता
अट्टहास-
आत्मा हूँ मैं!
परमात्मा तक जो,
ले जाए तुम्हें-
मार्ग हूँ मैं।
योग भी मैं;
और भोग भी मैं!!
अरे पगली-
शीर्ष भी मैं;
तेरा अर्श भी मैं!!
तू कुछ भी नहीं;
सब कुछ हूँ मैं!!
तू कौन है-
एक वस्र,
एक राख?
मैंने कहा-
सच ही तो है-
सब कुछ तुम;
मार्ग तुम;
राही मैं।
योग तुम-
वैरागी मैं;
भोग तुम-
कामना मैं;
तुम मेरे आदि-
तुम मेरे अंत!!
पर मैं-
मैं तुम्हारा शरीर-
मैं ही पराभूता!
न हो पाओगे
तुम शिव
बिना मेरे-
मैं ही
तुम्हारा शून्य;
और मैं ही
तुम्हारी अनंता!!
स्वरचित
डॉ आकांक्षा चौधरी
रांची झारखंड
[3
डोली न उठाओ हो कहार..
कि बाबुल अँगना छूटत नाही।
छूटत नाही छूटत नाही
होऽओ.. डोली न उठाओ हो कहार।।
कौरे कौरे खैली माखन मलाई
माई के हाथे आपन केश बंधाई
बाबा के हाथे पाई शीश पर दुलार
होऽओ डोली न उठाओ हो कहार..
कि मैया हम्मर रोवत बानी।
रोवत बानी रोवत बानी
कि डोली न उठाओ हो कहार..
बहिन भाई के झगड़ो में मेल
अल्हड़ बचपन झुलना के खेल
दौड़त रहिनी सब खेतवा पथार..
होऽओ डोली न उठाओ हो कहार..
बहिन छोटकी कछु जानत नाही।
जानत नाही जानत नाही
कि डोली न उठाओ हो कहार
सासू माँ की आँख के तारा
ससुर जी के प्राण पियारा
साजन चाहीं गौना हमार..
होऽओ डोली अब उठाओ हो कहार..
कि साजन हम्मर मानत नाही।
मानत नाही मानत नाही
होऽओ डोली अब उठाओ हो कहार..