“श्रीकृष्ण चरितम”
तिथि अष्टमी भाद्रपद, मथुरा जेल में हुआ उजाला।
वसुदेव-देवकी की गोद, प्रकट हुए जग के रखवाला।
प्रेम से देवकी निहारती कहे कैसे तुझे बचाऊं लाल,
अपना मामा कंस ही देखो, बन बैठा है तेरा काल।
आजाद कराकर वसुदेव को करवाया यमुना के पार,
यमुनाजी ने चरण स्पर्श करके अपना जीवन उद्धार।
फिर नंद के घर आनंद भयो मॉं यशोमती ने पाला,
देवकी- वसुदेव के सुत बन बैठे नंद गोप के लाला।
बधैयां सब मिलकर गाए दर्शन को ब्रजवासी आए,
जिसने किया प्रभु दर्शन, जन्म सुफल उनका हो जाए।
जब जब पाप बढ़ा है जग में, जब भी फैला है अत्याचार।
तब-तब धर्म की रक्षा हेतु प्रभु ने लिया है अवतार।
गोपियों के संग रास रचैया, राधा जी के कृष्ण कन्हैया।
बंसी की धुन पर सब को नचाते, वृंदावन में मुरली बजैया।
दर्प दूर कर इंद्रदेव का उठाया उंगली पर गोवर्धन कन्हैया,
पूतना का वध कर डाला धनुख मुष्टक चानूर विजैया।
बकासुर दानव को मारा, यमुना में किया कालिया मर्दन।
कंसासुर को मार गिराया प्रमुदित हुए मथुरा के जन-जन।
दाऊ बलराम संग शिक्षा पाई सांदीपनि मुनि के आश्रम में,
सुदामा के बने अनन्य सखा, मिसाल दोस्ती की बसी मन में।
रुक्मिणी की पुकार पर कृष्ण दौड़े-दौड़े चले आए,
पाणीग्रहण कर देवी का फिर लक्ष्मी-नारायण कहलाए।
सारथी बन अर्जुन के रथ की, कौरव सेना के नाश नसैया।
अधर्म पर धर्म की विजय दिखायी, द्रौपदी के भी लाज बचैया।
गीता का अनमोल ज्ञान दे दुनिया को उपदेश दिया,
कर्मण्येवाधिकारस्ते से कर्म प्रधान का आदेश दिया।
हर युग में वापस आऊंगा यह अर्जुन को संदेश दिया,
निश्चय करके युद्ध करो महाभारत का निर्देश दिया।
अब दे के दर्शन कर दो पूरी प्रभु मन की मेरे तृष्णा,
जगत का है हाल बुरा अब दरस दिखाओ श्रीकृष्णा।
© डॉ श्वेता सिन्हा
(आयोवा अमेरिका)
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