गणपति वंदन
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आज धरा पर गणपति बप्पा, मूषक लिए सवारी।
भक्तों की भी लगी भीड़ है, पूरी कर तैयारी।
घर-घर जाकर विविध रूप में, दर्शन सबको देते।
जन-जन का पातक हरने को, उसकी नैया खेते।
बाल-रूप में लगें सलोने, बच्चे करते यारी।
वृहत रूप में कहीं विराजें, लगती काया भारी।
लड्डू मोदक प्यारे इनको, सारे भोग लगाते।
भक्तजनों के बीच बाँटकर, तब प्रसाद सब पाते।
यह प्रवास दस दिन का होगा, गणपति सुन लो विनती।
पुनः धरा पर असुर बढ़ रहे, बढ़ती जाती गिनती।
पश्चिम में कुछ दानव बैठे, करते बड़ा धमाका।
उत्तर का वह देश चीन है, बनता उनका आका।
देवासुर संग्राम सरीखा, अवसर मानों आया।
हे गणेश अब रक्षा करना, उनका करो सफाया।
आतंकी पाते हैं सत्ता, सज्जन रहें किनारे।
संगीनों के नीचे जीवन, फिरते मारे मारे।
भगवन ऐसी माया करना, बदलें वे अपने को।
लागू करना विश्वशांति के, भारत के सपने को।
–उदयशंकर उपाध्याय।