कभी निहारूँ, जी भर के l
कभी आसन पे बैठाऊँ l
कभी रूठ कर,बच्चों सा ;
तुझसे ही करू लडाई l
तू तो मेरा सखा है कान्हा ,
ये जनम मैं तुझपे लुटाऊँ ll
है प्रीत भी तू l
भक्ति भी तूझसे l
तो फिर, किस ओर मैं जाऊं ?
मै तो तेरी दासी कान्हा l
ये जनम मैं तुझपे लुटाऊँ ll
नही कोई खबर मुझे तो मेरी l
बस तुझमे मै समाऊं l
सांझ सवेरे, हर पल निशिदिन;
खुद मे, तुझको ही पाऊँ l
मै तो तेरी जोगन कान्हा l
नित तेरे ही गुण गाउँ ll
नही कोई फिकर, रहे मुझे जग की l
खुद मे ही पुलकित हो जाऊँ l
तेरे लिए, बातों के क्या ;
विष के प्याले भी पी जाऊँ ll
तू है मेरा सर्वस्व ओ! कान्हा,
ये जनम मै तुझपे लुटाऊँ ll
लता मंजरी…