दिल की बात
उल्फ़त की राह में हँसी बिखेरता तू चल।
चांद न सही तू चाँदनी ही बनके निकल।।
देखते-देखते साहित्योदय के तीन साल पूरे हो गए। इस अल्पावधि में ही 100 से अधिक देश, 150 से अधिक शहर और 90 से अधिक भाषाओं के साढ़े सात लाख से अधिक लोगों के दिल में जगह बना पाने में सफल रहा है। साहित्योदय की कल्पना- परिकल्पना तो मन में वर्षो पहले बना रखा था। लिखने-पढ़ने की आदत तो बचपन से ही लगी थी। पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ बहुत पहले से छप रही थी। आकाशवाणी राँची में भी कविताओं का प्रसारण हो चुका था। दूरदर्शन में भी प्रस्तुति दे चुका था लेकिन किसी मंच पर पहली बार बतौर कवि वर्ष 2003 में गाज़ियाबाद हिंदी भवन में आयोजित एक कवि सम्मेलन में शामिल हुआ था। दिग्गज रचनाकारों के बीच बिल्कुल सहमा हुआ था। मुख्य अतिथि के रूप में तत्कालीन मॉरीशस के उच्चायुक्त थे। मेरे काव्यपाठ की बारी आयी रात साढ़े तीन बजे। तबतक आधे लोग नींद में ऊँघ रहे थे और कुछ दैनिक क्रियाओं में व्यस्त। कुल मिलाकर आधी-अधूरी अलसायी कुर्सियों के बीच पहली बार मंच पर कविता पढ़ी। मन मे कोफ्त भी था कि हजार किलोमीटर दूर आया भी तो इस वक्त नम्बर आया! खैर अगले दिन उच्चायुक्त के हाथों सम्मान लेना गौरवपूर्ण क्षण था। खट्ठे-मीठे साहित्यिक अनुभवों को लेकर वापस लौटा तो एक संकल्प के साथ कि एक ऐसा मंच बनाऊंगा जहाँ पूरी दुनिया को एक सूत्र में बांध हर किसी को समान रूप से मंच प्रदान करूँगा। हालाँकि पढ़ाई और पत्रकारिता में इतना उलझ गया कि साहित्य के पन्ने पीले पड़ने लगे। कलम की जगह कीबोर्ड की खटपट और कविता की जगह ब्रेकिंग न्यूज ने अपना बर्चस्व बना लिया। कुछ वर्षों बाद अपनी रचना/कविताओं के लिए ब्लॉग बनाया-बदलाव जो आगे चलकर मुसाफ़िर लफ़्ज़ों में तब्दील हो गया। बाकि रचनाएँ डायरी में चुपचाप सिसक रही थी। उनके प्रकाशन हेतु कोई रास्ता नहीं दिख रहा था। साहित्य की दुनिया में किसी का भी हाथ सर पर नहीं था तो इस बीहड़ जंगल में खुद को तनहा देखता। कुछ कार्य का बोझ कम हुआ तो इधर-उधर बिखरी रचनाओं को समेटकर पुस्तक का रूप दिया और 14 फरवरी 2018 को मेरा दो काव्य संग्रह अंतर्नाद और प्रेमांजली का लोकार्पण हुआ। सच कहूँ तो इसके बाद ही मेरे अंदर साहित्योदय हुआ और फिर महज़ 3 महीने में ही एक और संग्रह लफ्ज़ समंदर का प्रकाशित हो गया। फिर लगातार लेखनी चलती रही और किताबों का प्रकाशन, काव्यपाठ का सिलसिला शुरू हो गया। 2003 का संकल्प कुलबुलाने लगा और 8 अगस्त 2018 को साहित्योदय की परिकल्पना शुरू कर दी । करीब एक माह के गहन मंथन के बाद 8 सितम्बर 2018 को इसकी रूपरेखा और प्रस्तावना तैयार कर ली। 16 सितम्बर 2018 को ऑनलाइन समूह बनाकर मूर्त रूप दे दिया। तब बिल्कुल अकेला ही था। उसके बाद धीरे-धीरे लोग जुड़ते गए और आज विशाल कारवाँ बन गया। कई लोग सफ़र में संग चले तो कुछ रास्ते में ही बिखर गये। मैंने हिम्मत नहीं हारी और साहित्योदय को वैश्विक फलक पर उदीयमान करने हेतु दिनरात एक कर दिया। सबको एक मंच पर लाने हेतु साझा संकलन काव्यसागर और शब्द मुसाफ़िर पर काम शुरू कर दिया। लोग जुड़ते गए और विशाल संग्रह बन गया। इसमें सभी ने पूर्ण सहयोग किया। लोकार्पण हेतु 5 अप्रैल 2020 तय था लेकिन ऐन मौके पर कोरोना आया और सबकुछ ठप्प हो गया। इस विकट स्थिति को हमने चुनौती के रूप में लिया और सोशल मीडिया को सृजन का मंच बना दिया। 22 मार्च 2020 को कोरोना से जंग साहित्योदय के संग महाअभियान शुरू कर दिया। ऑनलाइन काव्य गोष्ठी, एकल लाइव सहित कई तरह के कार्यक्रम शुरू क़िया। रात के 2 बजे भी कोई आइडिया दिमाग मे आता तो तुरंत उठकर उसकी रूपरेखा तैयार कर पटल पर सीधे ऐलान कर देता था। हर सुबह एक नये कार्यक्रम की सूचना पटल पर होती। साहित्योदय परिवार बड़ी उत्सुकता के साथ हर आयोजन में भाग लेता रहा। हमने भी सबको उनकी सक्रियता और कार्य के अनुरूप पुरस्कृत करना शुरू कर दिया। आज दो दर्जन से अधिक देश, लगभग सभी प्रदेश और जिलों में साहित्योदय की इकाई कार्यरत है। सभी का अपार स्नेह, प्यार और आशीर्वाद साहित्योदय की शक्ति है। अपना प्यार यूहीं बरकरार रखें।
✍️पंकज प्रियम
संस्थापक-अध्यक्ष, साहित्योदय